Gulzar: ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हुए कवि-गीतकार, मिलिए 'शब्दों के जादूगर' से; कम लोग ही जानते हैं ये बातें

Gulzar Sahab Honoured with 58th Jnanpith Award: गुलज़ार साहब, भारतीय साहित्य और सिनेमा के एक ऐसे शिखर पुरुष हैं जिनकी लेखनी ने अनगिनत दिलों को छुआ है। वे केवल एक कवि या गीतकार नहीं, बल्कि भावनाओं के कुशल शिल्पी हैं जो अपने शब्दों से हर एहसास को जीवंत कर देते हैं। आइए आज उनके बारे में सबकुछ जानते हैं।

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Authored by: ET Now Digital

Updated May 17, 2025 13:01 IST

Gulzar Sahab

Gulzar Sahab: "शाम से आँख में नमी सी है, आज फिर आपकी कमी सी है" जानें शब्दों के जादूगर के बारे में सबकुछ

Gulzar Sahab Honoured with 58th Jnanpith Award: गुलज़ार साहब, भारतीय साहित्य और सिनेमा के एक ऐसे शिखर पुरुष हैं जिनकी लेखनी ने अनगिनत दिलों को छुआ है। वे केवल एक कवि या गीतकार नहीं, बल्कि भावनाओं के कुशल शिल्पी हैं जो अपने शब्दों से हर एहसास को जीवंत कर देते हैं। गुलज़ार साहब की कविताएँ जीवन की गहरी सच्चाइयों को सरलतम रूप में प्रस्तुत करती हैं, जबकि उनके गीतों में प्रेम, विरह और मानवीय रिश्तों की अद्भुत गहराई मिलती है। वे सचमुच शब्दों के बादशाह और भावनाओं के शहंशाह हैं।
लेकिन आज हम गुलजार साहब को एक बार फिर याद इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्हें साहित्यिक योगदान के लिए 58वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नई दिल्ली के विज्ञान भवन में भारतीय साहित्य में दो उल्लेखनीय योगदान के लिए गुलजार साहब को सम्मानित किया है।
गुलज़ार साहब का प्रारंभिक जीवन
गुलज़ार, जिनका असल नाम 'सम्पूर्ण सिंह कालड़ा' है, 18 अगस्त 1934 को अविभाजित हिंदुस्तान के ज़िला झेलम के गांव देना में पैदा हुए। उनके पिता का नाम मक्खन सिंह था जो छोटा मोटा कारोबार करते थे। गुलज़ार की माता का देहांत तभी हो गया था जब वो दूध पीते बच्चे थे और सौतेली माँ का सुलूक उनके साथ अच्छा नहीं था। इसलिए गुलज़ार अपना ज़्यादा वक़्त बाप की दुकान पर गुज़ारते थे। पाठ्य पुस्तकों से उनको ज़्यादा दिलचस्पी नहीं थी और इंटरमीडिएट में फ़ेल भी हुए लेकिन अदब से उनको लड़कपन से ही गहरा लगाव था और रवीन्द्रनाथ टैगोर और शरत चंद उनके पसंदीदा अदीब थे। दरअसल इसी बंगला पंजाबी पैवंदकारी से जो फलदार पेड़ पैदा हुआ उसका नाम गुलज़ार है।
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गुलज़ार साहब का बॉलीवुड में योगदान
गुलज़ार का साहित्यिक और सिनेमाई सफर छह दशकों से भी लंबा है, और इस दौरान उन्होंने अनगिनत उत्कृष्ट रचनाएँ दी हैं। उनकी कविताएँ, जिनमें नज़्म और ग़ज़लें शामिल हैं, जीवन के साधारण पलों में भी गहरी अर्थवत्ता ढूंढ निकालती हैं। उनकी भाषा में एक सहज प्रवाह और एक काव्यात्मक लय होता है जो पाठकों को बांधे रखता है। उनकी निर्देशित फिल्में जैसे "मेरे अपने", "कोशिश", "अंगूर", और "माचिस" अपनी संवेदनशीलता और मानवीय दृष्टिकोण के लिए जानी जाती हैं।
एक गीतकार के रूप में, गुलज़ार ने भारतीय सिनेमा को अनमोल रत्न दिए हैं। उनके लिखे गीत "तुझसे नाराज़ नहीं ज़िंदगी", "दिल तो बच्चा है जी", "तेरे बिना ज़िंदगी से कोई शिकवा नहीं", और "चप्पा चप्पा चरखा चले" आज भी हर पीढ़ी के संगीत प्रेमियों के दिलों में बसे हुए हैं।
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गुलज़ार साहब की उपलबधियाँ
  • साहित्य अकादमी पुरस्कार: अपनी साहित्यिक सेवाओं के लिए प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित।
  • दादा साहब फाल्के पुरस्कार: भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान, दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजे गए।
  • अनेक फिल्मफेयर पुरस्कार: सर्वश्रेष्ठ गीतकार और सर्वश्रेष्ठ संवाद लेखक के तौर पर कई फिल्मफेयर पुरस्कार जीते।
  • राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार: सर्वश्रेष्ठ गीत और सर्वश्रेष्ठ पटकथा के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त किए।
  • ऑस्कर और ग्रैमी पुरस्कार: फिल्म "स्लमडॉग मिलियनेयर" के गीत "जय हो" के लिए सर्वश्रेष्ठ मूल गीत का अकादमी पुरस्कार (ऑस्कर) और ग्रैमी पुरस्कार जीता।
गुलज़ार साहब की बेहतरीन शायरी का एक छोटा सा गुलदस्ता यहाँ पेश है
1. वक़्त करता जो वफ़ा आप हमारे होते,
हम भी औरों की तरह आप से प्यारे होते।
2. शाम से आँख में नमी सी है,
आज फिर आपकी कमी सी है।
3. उम्र भर का साथ तो कोई नहीं निभाता,
लोग तो जनाज़े में भी कंधे बदलते हैं।
4. आँखों में पानी रखो होंठों पे चिंगारी रखो,
ज़िंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो।
5. कुछ लम्हे ऐसे होते हैं जो वक़्त के हाथों से फिसल जाते हैं,
मगर यादों की सिलवटों में हमेशा महफूज़ रहते हैं।

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